इनसे मिलो – 31

सितम्बर 9, 2006 at 12:47 अपराह्न 1 टिप्पणी

ये खुदा है

आज उसामा बिन लादिन ने अपना ताज़ा वीडियो डाइरेक्ट खुदा के नाम भेज दिया जिसमे वोह बंदूक पकडे अपनी रिवायती खबरदार उंगली को खुदा की तरफ नचाते हुए कहाः

सभी तारीफें अमेरिका के लिए जो निहायत ही गज़बनाक और दुनिया का चौकिदार है – पहले तो हम हर काम खुदा की तारीफ से शुरू करते थे, अब क्योंकि खुदा कि चाल चलन से साफ ज़ाहिर है के वोह भी अमेरिका का तरफदारी है – हम मुजाहिदीन सिर्फ इनतेज़ार ही करते रहे कि एक ना एक दिन खुदा हमारी मदद को ज़रूर आएग और वोह आया भी तो सीधा अमेरिका मे उतरा। वाह क्या खाख ज़िन्दगी पाई हमने? सोचा था अपने नेक कर्मों की वजह से खुदा खुश होकर जन्नत मे सबसे ऊँचा मुकाम देगा मगर वोह खुद जन्नत छोड यहां अमेरिका मे आ बसा – अफगान, ईराक, चैच्निया मे इनतेज़ार करते ही रहे कि खुदा बचाने ज़रूर आएग मगर खुदा ने अपनी औकात दिखलादी के वोह भी अमेरिका के आगे कुछ नहीं। ए दुनिया के दाता, ज़रा ये तो बता आखिर ये कैसा सिस्टम है तेरा? हम तेरी खातिर मरते-मारते हैं, दुनिया भर मे आतंक मचाते हैं ताकि जन्नत मे एक छोटा सा झोंपडा मिल जाए मगर तूने हमसे पूरे काम लिए फिर दुनिया ही मे खाख चटादी? हमारी समझ मे नही आ रहा कि हम किस के लिए काम कर रहे हैं? अब तू ही बता दे आखिर हमें कौनसा धर्म अपनाना होगा ताकि दूसरों की तरह हम भी सर उठाकर जिएं। माता पिता के वरसे मे जो धर्म मिला, मज़हबी पढाई हम पर फर्ज़ हुई और जब पढलिया तो ज़हन ऐस बन गया कि दूसरे धर्मों के लिए नफरत जगाली, लिबास तबदील किया, गले मे खुजली के बावजूद छाती तक डाढी छोडी फिर जन्नत मे सबसे ऊँचा मुकाम पाने के लिए जिहाद का पेशा अपना लिया इसके बावजूद आज भी हम दुनिया भर मे बेइज़्ज़त ठेहरे? दुनिया के सभी देश एक होकर हमें नाकों चने चबवा रहे हैं। हम तसव्वुर करते ही रहे कि खुदा की मदद करीब है मगर हमेशा मूंह की खानी पडी। दुनिया भर मे हमारे मुजाहिदीन को चुन चुन कर कुत्तों की तरह मारा जा रहा है। उन मरने वाले मुजाहिदीन को शहीद कहते हुए भी शर्म आती है क्योंकि उनके चेहरे पहचानने लायक भी नही छोडते। शहीदों को जन्नत नसीब है मगर खुदा खुद अमेरिका मे ऐश कर रहा है। किस्से कहानियों मे हमेशा जिहाद की विजय लिखा है और हमने जहां कहीं भी जिहाद किया हमेशा मुंह की खानी पडी। काश खुदा भी एक मुजाहिद होता, क्योंकि एक मुजाहिद ही दूसरे मुजाहिद का दर्द समझता है। हम इस वकत बहुत ही कनफ्युज़न का शिकार हैं, पहले तो अपने आप को बहुत बडा मुजाहिद समझा, चंद लोगों ने हौसला क्या बढाया कि खुद को वलीयों मे तस्वुर कर बैठे – हमें क्या मालूम था कि दुनिया वाले हमारे इस पवित्र पेशे को आतंकावी समझते हैं? कुछ समझ नही आरा कि आखिर हमारी ज़िन्दगी का मकसद क्या है? (उसामा के आंसू निकल पडे) हमे इनसानियत के पवित्र मुकाम से निकाल कर मज़हब मे फैंक दिया फिर हमने ऐसा कौनसा गुनाह किया कि जिहादी ग्रुह का लीडर बना दिया जहां रुसवाई, शर्मिन्दगी के बाद फिर आखिर मे बहुत बुरी मौत है – जब हमें मुजाहिद बना ही दिया तो फिर जानवर बनने मे देर नही – काश आप हमें जानवर ही बना देते या फिर इनसानों मे पैदा ही ना करते तो आज अपनी ऐसी बुरी हालत ना होती। (उसामा ने रुमाल से अपने आंसू पुंछे और खुदा की तरफ घूरते हुए कहा) इस वीडियो कैसेट के ज़रिए आज इकरार करता हूं, जिहादी नौकरी छोड कर क्म्प्यूटर इन्जीनियर बनना चाहता हूं और अपनी बाकी ज़िन्दगी इनसानों की तरह जीना चाहता हूं।

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1 टिप्पणी Add your own

  • 1. संजय बेंगाणी  |  सितम्बर 9, 2006 को 2:03 अपराह्न

    बहुत खुब. अच्छा लिखा हैं. काश उन्हे सच में पछतावा हो.

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